मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल गुरुग्राम ने शुरू किया बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के साथ किया जा रहा इलाज
- मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल ने खून से जुड़ी समस्याओं के बारे में लोगों को किया जागरूक
- ब्लड डिसऑर्डर में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के इलाज की बताई भूमिका
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट का सक्सेस रेट काफी हाई, लोगों की बचा रहा जान
गुरुग्राम। अजय वैष्णव। मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स गुरुग्राम ने गुरुग्राम व आसपास के मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया कराने के उद्देश्य से अपने यहां बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट की शुरुआत की है. मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट के क्लिनिकल डायरेक्टर डॉक्टर मीत कुमार इस विभाग को लीड कर रहे हैं. जबकि पीडिएट्रिक हेमेटो-ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट के कंसल्टेंट डॉक्टर नीरज तेवतिया डॉक्टर मीत को सहयोग कर रहे हैं.
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स गुरुग्राम लगातार जागरूकता बढ़ा रहा है और खून से संबंधित विकारों और बीमारियों के इलाज में हाल ही में हुई प्रगति से जुड़े मिथकों को दूर कर रहा है. ये हैरानी की बात है कि महज 10% आबादी ही ब्लड से संबंधित बीमारियों के लक्षणों और इलाज के तौर-तरीकों से अवेयर है. इस स्थिति के मद्देनजर अस्पताल ने ब्लड संबंधी बीमारियों के बारे में लोगों को बताने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं.
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट के क्लिनिकल डायरेक्टर डॉक्टर मीत कुमार ने कहा, ''ब्लड डिसऑर्डर कैंसर के सबसे घातक रूपों में से एक है जो जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. ऐसे में लोगों के बीच ये जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए इन बीमारियों को स्थायी रूप से ठीक किया जा सकता है. एक्यूट ल्यूकेमिया, मल्टीपल मायलोमा, एप्लास्टिक एनीमिया, थैलेसीमिया मेजर, सिकल सेल डिजीज जैसी जिन बीमारियों को घातक माना जाता था, और जिनमें कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी जैसे पारंपरिक विकल्प फेल हो जाते हैं, उनका अब बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के जरिए सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है.''
बीएमटी का इस्तेमाल कई तरह की परेशानियों में किया जाता है, जैसे ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, प्रतिरक्षा की कमी, अप्लास्टिक एनीमिया, कुछ ऑटोइम्यून डिसऑर्डर. इसके अलावा ब्रेन ट्यूमर, न्यूरोब्लास्टोमा और सार्कोमा जैसे ट्यूमर के मामले में भी बीएमटी का उपयोग होता है. जिस मरीजों को बीएमटी की जरूरत होती है उनमें 6 महीने की उम्र से हर महीने ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराने वाले रोगी, कमजोरी महसूस करने वाले अप्लास्टिक एनीमिया के मरीज, थकान, लगातार बुखार, या शरीर पर रक्तस्राव के धब्बे आते हैं. इसके अलावा ब्लड कैंसर के जिन मरीजों को कमजोरी, थकान, संक्रमण का रिस्क और रक्तस्राव होता है, उन्हें बीएमटी की आवश्यकता होती है.
हेमेटोलॉजी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन में काफी तरक्की हुई है जिसकी मदद से बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन अब उन रोगों के लिए भी कामयाब बन गया है जिन्हें पहले इलाज योग्य नहीं समझा जाता था और हालत मरने जैसी हो जाती थी. बोन मैरो रक्त कोशिका उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और बीएमटी में क्षतिग्रस्त या बेकार बोन मैरो की जगह स्वस्थ कोशिकाओं को लगाया जाता है. इस प्रक्रिया को मोटे तौर पर दो प्रकारों में बांटा गया है: एलोजेनिक, इसमें मिलते-जुलते डोनर के टिशू का इस्तेमाल होता है, और दूसरा है ऑटोलॉगस, जिसमें मरीज की स्टेम कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है.
हाल की प्रगति ने हैप्लोआइडेंटिकल ट्रांसप्लांट को काफी सक्षम बनाया है, जिसमें 50 फीसदी मैच वाले डोनर के होते हुए सफल ट्रांसप्लांट हो जाता है. इस तरह के इनोवेशन ने बीएमटी की तत्काल आवश्यकता वाले मरीजों के इंतजार को खत्म करने का काम किया है.
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर और ग्रुप सीईओ डॉक्टर राजीव सिंघल ने कहा, ''जैसा कि हम आज अपनी बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट का उद्घाटन कर रहे हैं, इसके साथ ही हम ब्लड संबंधी विकारों और इलाज की एडवांस पद्धतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का भी आगाज करते हैं. हम आशा, इलाज और अग्रणी चिकित्सा देखभाल की यात्रा शुरू कर रहे हैं और सही जानकारी व जागरूकता के साथ आम जनता की सहायता करने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं. बोन मैरो की समस्याओं से जूझ रहे मरीजों के लिए हम सीमाओं से परे जाकर उन्हें बेस्ट ट्रीटमेंट मुहैया करा रहे हैं. बचाव के उपायों के बारे में जानकारी देकर, लक्षणों की पहचान करने की भूमिका बताकर और एडवांस इलाज के बारे में बताकर हम क्लिनिकल एक्सीलेंस और स्किल्ड प्रोफेशनल के साथ मरीजों की देखभाल के मिशन में समर्पण भाव से बढ़ रहे हैं.''
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स में फैसिलिटी डायरेक्टर नीता रजवार ने कहा, ''मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल इस जागरूकता सेशन जैसी पहल के जरिए लोगों को उनके स्वास्थ्य के प्रति सचेत करने के लिए प्रतिबद्ध है. ब्लड डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए एडवांस इलाज के तौर-तरीकों की समझ और रिस्पांस को मजबूत करके, अस्पताल सक्रिय रूप से समाज की भलाई के लिए काम करता है.''
भारत में लगभग 2,500 से 3,000 बीएमटी हर साल किए जाते हैं, जबकि 3 साल पहले ये संख्या केवल 500 थी. हालांकि, बीएमटी की मांग अब तक किए जा रहे प्रत्यारोपण की संख्या से अधिक है. जागरूकता की कमी, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा और कुशल डॉक्टरों की कमी के चलते ये हालात हैं. भारत में बीएमटी लगातार बढ़ रहे हैं और लगभग 2,500 प्रत्यारोपण हर साल किए जा रहे हैं. जबकि पांच साल पहले यह 500 से कम था. बीएमटी की सुविधा मुहैया कराने वाले सेंटरों की संख्या भी बढ़ रही है, और एडवांस बुनियादी ढांचे के साथ बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन केंद्रों का तेजी से विस्तार हो रहा है. इससे सुपर-स्पेशलाइज्ड क्लिनिकल एक्सिलेंस तक पहुंच बढ़ी है और एडवांस तकनीकों के साथ बीएमटी में सटीकता आई है.