*विपक्ष को माओवादी, घुसपैठिए कहते पीएम मोदी व अमित शाह को नसीहत क्यों नहीं दी चुनाव आयोग ने ? माईकल सैनी (आप)
*संविधान की बात न करें दल ईसी की नसीहत, तो क्या मुगल,मटन,मंगलसूत्र मुद्दे पर ही चुनाव लड़े विपक्ष ? माईकल सैनी (आप) इंडिया
गुरुग्राम 23/5/2025 राजनीतिक दलों को नहीं केवल पीएम नरेन्द्र मोदी को नसीहत देनी चाहिए निर्वाचन आयोग को चूँकि सर्वाधिक जाती धर्म सम्प्रदायों की बातें निज भाषणों में वही कर रहे हैं परन्तु उन तक चुनाव आयोग की नसीहत (नोटिस) के पहुंचने में हिम्मत है ही नहीं पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा तक पहुंचकर थम जाता है मगर आदतन फोरी नसीहतें देने वाला चुनाव आयोग विपक्षी दलों को शामिल कर ले रहा है ताकि लेवल प्लेइंग फील्ड वाले अपने कथन की सार्थकता को दर्शा सके, अब सवाल यह उठता है कि पूर्व में चेतावनी देने के अगले ही पल पीएम मोदी उनकी चेतावनियों को धता बताते हुए मटन, मछली, मुगल, औरंगजेब द्वारा सनातन धर्म पर हमले का भय दिखा वोटें बटोरने वाला भाषण दे डालते हैं अर्थात इधर ईसी की ताज़ा चेतावनी आयी उधर मोदीजी प्रमुख विपक्षी दल कोंग्रेस के साथ खड़े सभी दलों को सिख विरोधी दंगों का गुनहगार बता देते हैं, तो ऐसे में चुनाव आयोग की नसीहतों का क्या असर रह जाता है व पूर्व में की गई शिकायतों का क्या हुआ और इस बयान पर क्या संज्ञान लेगा चुनाव आयोग ?
आम आदमी पार्टी नेता माईकल सैनी ने आयोग द्वारा सांप्रदायिक आधार पर प्रचार न करने व सैन्य बलों का राजनीतिकरण करने से परहेज की नसीहत दी है जो देनी भी चाहिए मगर वह चेतावनियां ही बेमायने साबित होती नजर आए तो क्या लाभ ?
बांसवाड़ा में प्रधानमंत्री मोदी के विभाजनकारी भाषण को लेकर जेपी नड्डा को एक माह पूर्व जारी नोटिस के जवाब में उनका यह तर्क कि उनके स्टार प्रचारकों के बयान तथ्यों पर आधारित हैं को भले ही ईसी ने खारिज करते हुए कहा हो कि भाषणशैली की तकनीकी खामियां व अतिवादी व्याख्याओं को जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकते हैं, दीगर बात है कि मामले पर जवाब देने में लंबा अरसा निकाल दिया गया जिसे लेकर संदेह उत्पन्न होता है कि जानबूझकर देरी कर कहीं सत्ताधारी दल के नेताओं को लाभ तो नहीं पहुंचाया जा रहा है अन्यथा चुनावी समर में बरती गई लेटलतीफी के कारण क्या रहे ?
माईकल सैनी का मानना है कि छठे चरण का मतदान कल होना है जिसके एक दिन पूर्व आदर्श आचार संहिता की याद दिलाते हुए नसीहतें देना के प्रचार गुणवत्ता युक्त और सुधारात्मक होनी चाहिए कोई मायने रखता नजर नहीं आता चूँकि 'यही दौर अंतिम यही रात बाकि"