भारत के साथ व्यापारिक स्थिरता के लिए बांग्लादेश में लोकतांत्रिक सरकार जरूरी: दीपक मैनी

भारत के बिना लंबे समय तक बांग्लादेश आर्थिक और व्यापारिक रूप से नहीं कर पाएगा विकास 

- भारत और बांग्लादेश के बीच 18 बिलियन डॉलर का है व्यापार

गुरुग्राम। अजय वैष्णव।प्रोग्रेसिव फेडरेशन ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (पीएफटीआई) के चेयरमैन दीपक मैनी का कहना है कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद की राजनीतिक अस्थिरता भारतीय निवेश और व्यापार के लिए गंभीर चुनौती पेश कर रही है। नई सरकार की नीतियों पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि हमारे व्यापारिक हित कैसे सुरक्षित रहेंगे। बांग्लादेश के मामले में भारत सरकार को कड़े कदम उठाने कीआवश्यकता है। पीएफटीआई चेयरमैन ने कहा कि बांग्लादेश में भारत के निवेशकों के हितों के संरक्षण और उनके हितों के पोषण के लिए भी तैयार रहना होगा।


मैनी ने कहा कि भारत और बांग्लादेश के बीच 18 बिलियन डॉलर का व्यापारिक संबंध है, जिसमें भारतीय कंपनियों ने ऊर्जा, वस्त्र, और अवसंरचना क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निवेश किए हैं। लेकिन हालिया राजनीतिक घटनाक्रमों ने इन संबंधों पर खतरा खड़ा कर दिया है। बांग्लादेश में जो कुछ भी हो रहा है इससे भारत के मुकाबले बांग्लादेश को भारी नुकसान के दरवाजे पर खड़ा कर दिया है। गारमेंट्स सेक्टर में बांग्लादेश तेजी से उभर रहा था फिलहाल अब उसकी गाड़ी पटरी से उतर चुकी है जिसका लाभ भारत को मिलता दिख रहा है। लंबे समय तक भारत विरोध की बात पर ना तो वहां की अंतरिम सरकार लंबे समय तक टिक सकती है और ना ही भविष्य में आने वाली सरकार। ऊर्जा के मामले में बांग्लादेश भारत पर निर्भर है। भारत की नाराजगी से बांग्लादेश बड़े खाद्यान्न संकट में फंस जाएगा।


व्यापार और उद्योग पर प्रभाव

दीपक मैनी ने कहा कि बांग्लादेश में जारी अस्थिरता से भारतीय परियोजनाओं में देरी और लागत में वृद्धि हो सकती है। इसके अलावा, नई सरकार यदि संरक्षणवादी नीतियां अपनाती है, तो यह हमारे निवेशों और आयात-निर्यात श्रृंखलाओं को प्रभावित कर सकती है।


भारतीय कपड़ा और फार्मा उद्योग, जो बांग्लादेश पर कच्चे माल और श्रम के लिए निर्भर हैं, को आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही, ऊर्जा और अवसंरचना क्षेत्रों में निवेश की गई परियोजनाओं पर देरी या रद्द होने का खतरा भी बढ़ गया है।


निवेशकों के लिए समस्याएं और समाधान

परियोजनाओं में देरी

राजनीतिक अस्थिरता और स्थानीय नीतिगत बदलावों से चल रही परियोजनाओं में रुकावट आ सकती है।


अनुबंधों का संशोधन

नई सरकार भारतीय कंपनियों के अनुबंधों पर पुनर्विचार कर सकती है, जिससे आर्थिक नुकसान की संभावना है।


निवेश का बीमा

दीपक मैनी का सुझाव है कि निवेशकों को अपने निवेश का बीमा कराना चाहिए और जोखिम को कम करने के लिए वैकल्पिक बाजारों का अध्ययन करना चाहिए।


कूटनीतिक प्रयास और क्षेत्रीय सहयोग

दीपक मैनी ने कहा कि भारत को अपनी कूटनीतिक ताकत का इस्तेमाल करते हुए बांग्लादेश की नई सरकार के साथ व्यापार-अनुकूल नीतियों को सुनिश्चित करना चाहिए। इसके अलावा, सार्क और अन्य क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से आर्थिक स्थिरता के लिए सहयोग बढ़ाने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।


भारत और बांग्लादेश के व्यापारिक संबंधों के लिए यह एक संवेदनशील समय है। हालांकि, चुनौतियों के बीच समाधान और सुधार की संभावनाएं भी मौजूद हैं। रणनीतिक कूटनीति और व्यापार-अनुकूल कदम उठाकर इस अनिश्चितता को अवसर में बदला जा सकता है।

भारतीय कंपनियों की बांग्लादेश में उपस्थिति


रिलायंस इंडस्ट्रीज: ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल्स क्षेत्र में निवेश।  


 अडानी ग्रुप: ऊर्जा परियोजनाओं में पावर प्लांट और आपूर्ति।  


मैरिको: राजस्व का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश से।  


डाबर: उत्पादों की उच्च मांग।


वीआईपी इंडस्ट्रीज: 8 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स।


दिल्ली एनसीआर पर मिला-जुला असर...


दिल्ली एनसीआर में स्थित गारमेंट कंपनियां, जो बांग्लादेश से कच्चे माल और तैयार माल आयात करती हैं, उन्हें आपूर्ति श्रृंखला में देरी और लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, बांग्लादेश की गारमेंट इंडस्ट्री की रुकावट से भारतीय गारमेंट उत्पादक उद्योग को लाभ मिल सकता है, क्योंकि यह भारतीय उत्पादों की मांग को बढ़ावा दे सकता है। हालांकि, इस संकट से आने वाले समय में कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति में कमी की समस्या पैदा हो सकती है।

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