देश की चुनाव प्रक्रिया में सकारात्मक सुधार लाने की एक विलक्षण पहल - “एक राष्ट्र, एक चुनाव”- मात्र नारा नहीं यह एक मंत्र है।

 देश की चुनाव प्रक्रिया में सकारात्मक सुधार लाने की एक विलक्षण पहल - “एक राष्ट्र, एक चुनाव”- मात्र नारा नहीं यह एक मंत्र है।

हमारा राष्ट्र एक है, तिरंगा एक है,  संविधान एक है तो चुनाव भी एक क्यों नहीं? : बोधराज सीकरी, विभाग प्रमुख “एक राष्ट्र -एक चुनाव “ 

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए “एक राष्ट्र - एक चुनाव”की पहल अद्भुत भूमिका निभा सकती है। 25 राजनीतिक दलों ने इसे कार्यान्वित करने का समर्थन किया और दुर्भाग्य से 15 ने इसका विरोध किया।  भारत के सर्वोच्च न्यायालय के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने और उच्च न्यायालय के 9 पूर्व न्यायाधीशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। उच्च स्तरीय समिति द्वारा जनता के मांगे गए सुझावों में से 83% प्रतिक्रियाएं इसके पक्ष में है केवल 17% लोग इसका विरोध कर रहे हैं। जब कभी भी, कहीं भी एक साथ चुनाव हुए हैं उसमें वोट का प्रतिशत सराहनीय रहा है। उदाहरण के तौर पर 1999 में कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में जहां पर 11% की वृद्धि हुई। इसी प्रकार 1970 में केरल में मतदान एक साथ कराए गए जिसमें 20% की वृद्धि हुई।  यहां तक कि पूर्वोत्तर राज्यों में भी एक साथ चुनाव कराने से 21% की वृद्धि हुई। 2019 में इंडी गठबंधन के प्रमुख नेता श्री शरद पवार ने भी इसका समर्थन किया और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री करुणानिधि ने भी इसकी सराहना की। परन्तु दुर्भाग्यवश उनके पुत्र एम.के. स्टालिन जो इस समय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री है, इससे सहमत नहीं है। 


हमारा राष्ट्र एक है, तिरंगा एक है,  संविधान एक है, राष्ट्रगान एक है, गंगा एक है, यमुना एक है, हिमालय एक है और हम सब भारतवासी भी एक हैं। राष्ट्र की एकरूपता को एकता में परिवर्तित करने के लिए यह वास्तव में सराहनीय कदम है। पूर्व चुनाव अधिकारी टी.एन. शेषन ने इस निमित्त पहल की थी। यदि इस प्रस्ताव को आज का युवा एक मुहिम ना कहकर एक आंदोलन मान ले और अपने स्तर पर जन-जन तक यह जागरूकता अभियान छेड़ दे तो वो दिन दूर नहीं जब पूरा का पूरा राष्ट्र इस वास्तविक सकारात्मक सुझाव से अपनी सहमति प्रदान करेगा और जो हम विकसित भारत 2047 की बात कर रहे हैं, निःसन्देह जीडीपी के अंदर इतनी सराहनीय बढ़ोत्तरी होगी कि हम विकसित भारत 2047 से पहले भी विकसित बन सकते हैं। समय की बर्बादी, धन की बर्बादी, सरकारी तंत्र का समय बर्बाद और कम प्रतिशत वोट डलने की उदासीनता, यह सब दृष्टिकोण सकारात्मक परिणाम ला सकते हैं।


यह प्रस्ताव देश को फिजूल खर्ची से बचाएगा। आओ सब देशवासी इसे राष्ट्रहित में समझकर इस आंदोलन को जन-जन तक, घर-घर तक पहुंचाएं। राष्ट्र सर्वोपरि। 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' एक नारा न रहकर एक मंत्र का रूप धारण कर ले, यही कामना है।

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